Sunday, February 16, 2014

देश के लिए लोकविद्या एजेंडा पंचायत -- Lokavidya Agenda for the Nation Vidya Ashram, Sarnath, Varanasi 10-11 February 2014

( A brief English version is at the end. )

दिनांक 10  और 11  फरवरी को विद्या आश्रम पर हुई पंचायत इस बात पर चर्चा करने के लिए बुलाई गयी थी कि लोकविद्या जन आंदोलन और किसान व कारीगर संगठनों के पास इस देश का एजेंडा क्या होना चाहिए इस पर कहने के लिए क्या है। पंचायत में काफी विस्तृत भागीदारी रही - इंदौर, सिंगरौली, दरभंगा और वाराणसी के लोकविद्या जन आंदोलन  के  साथी उपस्थित थे।  भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय और राज्य स्तर के पदाधिकारियों के साथ वाराणसी, मिर्ज़ापुर, ग़ाज़ीपुर, चंदौली और मऊ के संगठनकर्ताओं ने भाग लिया। वाराणसी से 'कारीगर नजरिया' से जुड़े बुनकर संगठनकर्ताओं ने भाग लिया। लगभग सौ लोगों की भागीदारी रही।
इस बहस को आज की राजनीतिक परिस्थितियों में विशेषतौर पर प्रासंगिक माना  गया। 9 फरवरी की शाम को आश्रम में हुई तैयारी बैठक में इंदौर से आये निर्माण मिस्त्री शेरसिंह ने कहा कि 'लोकविद्या सरकार' बने बगैर इस देश के ग़रीबों की कोई नयी दुनिया नहीं बनायीं जा सकती है।  उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव की जो प्रक्रियाएं प्रचलित हैं, उनसे यह सरकार नहीं बन सकती।  लोकविद्या सरकार की बात सभी को बहुत पसंद आयी और अगले दो दिनों की वार्ताओं में इसकी गूंज बराबर बनी रही।  लोकविद्या के आधार पर बड़े बदलाव की ज्ञान कि राजनीति बनाने की प्रक्रियाओं में इस विचार की केंद्रीय भूमिका हो सकती है, ऐसा भी कहा गया। यह माना गया  कि 'लोकविद्या सरकार ' का  विचार लोकविद्या जन आंदोलन के राष्ट्रीय एजेंडा बनाने की प्रक्रियाओं में प्रयोग में लाना चाहिए। 

पंचायत तीन सत्रों में संपन्न हुई।  दो सत्र  10 फरवरी को और एक 11 फरवरी को।

पंचायत के सभी वक्ताओं ने कहा कि आम आदमी पार्टी के उदय से स्थापित राजनीति में बड़े संकट की  स्थिति है , लेकिन लोकविद्या समाज को इस पार्टी से उम्मीद न पालकर वर्तमान परिस्थितियों में एक लोकविद्या एजेंडा बनाने की ओर आगे बढ़ना चाहिए।  यानि किसान , कारीगर और आदिवासी समाजों के संगठनों, पंचायतों आदि को आपसी ताल-मेल और विचार विमर्श के जरिये देश की उन नीतियों के प्रस्ताव बनाने चाहिए जो बदलाव और पुनर्निर्माण की प्रक्रियाओं में उनके अपने ज्ञान की केंद्रीय भूमिका पर ज़ोर देती हों। 
पहले सत्र का अध्यक्ष मंडल - बायें से चंद्रवीर नारायण (दरभंगा), दिलीप कुमार(वाराणसी ), संजीव दाजी(इंदौर), लक्ष्मीचंद दुबे(सिंगरौली), प्रेमलता सिंह(वाराणसी), चित्रा सहस्रबुद्धे। 

लोकविद्या जन आंदोलन
के विभिन्न स्थानों के समूहों ने अपने-अपने क्षेत्रों में लोकविद्या एजेंडा पर बहस के सिलसिले में वे क्या प्रक्रियाएं चलाएंगे इसके बारे में बताया।  इंदौर के लोकविद्या समन्वय समूह की ओर से संजीव दाजी व उनके सहयोगियों ने कहा कि वे अपने तीन कार्यक्रमों के ज़रिये ज्ञान पंचायतों के मार्फ़त यह बहस चलाएंगे।  ये तीन कार्यक्रम हैं - लोकविद्या सत्संग की  टोलियों के साथ यात्राएं, 'बाज़ार मोड़ो-लोकविद्या बाज़ार बनाओ' कार्यक्रम के अंतर्गत महिलाओं द्वारा वस्त्र व खाद्य निर्माण के ठोस कार्यों को आकार देना और शहर की कारीगर बस्तियों तथा पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र से प्रभावित गाँवों में 'विकास' के धोखे पर ध्यान केंद्रित करना और किसानों व कारीगरों के ज्ञान से जोड़कर एक नए अजेंडे के लिए पंचायतें व मेल-मिलाप आयोजित करना।  सिंगरौली के लोकविद्या जन आंदोलन समूह की ओर से लक्ष्मीचंद दुबे और रवि शेखर ने  सिंगरौली  तहसील में पंचायतों के एक सघन कार्यक्रम व  चारों तहसीलों में एक-एक लोकविद्या आश्रम बनाने के बारे में कहा। और यह कहा कि प्रमुख मुद्दे वही रहेंगे जो पिछले साल सिंगरौली अधिवेशन में तय किये गए थे यानि विस्थापन पर पूरी रोक,  लोकविद्या के आधार पर सबको पक्की व नियमित आय तथा बिजली का बराबर का बंटवारा। अवधेश कुमार और मंजू सिंह व एकता ने भी अपने विचार रखे। दरभंगा के साथियों, चंद्रवीर नारायण और विजय कुमार ने किसानों के ज्ञान पर आधारित कृषि के प्रयोगों तथा किसानों और कारीगरों को साथ लाने के मौके तैयार करने के प्रस्ताव रखे। वाराणसी से कारीगर नजरिया की ओर से  प्रेमलता सिंह और एहसान अली ने दो बातें कहीं ।  एक यह कि वे कारीगर नजरिया अखबार में कारीगरों कि दृष्टि से राष्ट्रीय एजेंडा पर बहस चलाएंगे और दूसरा यह कि कारीगर संगठनों के बीच किसान पंचायतों में भी शामिल होने के लिए अभियान चलाएंगे।  वाराणसी के लोकविद्या जन आंदोलन और भारतीय किसान यूनियन दोनों के वरिष्ठ कार्यकर्त्ता दिलीप कुमार और लक्ष्मण प्रसाद ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में किसान-कारीगर पंचायतों का एक सिलसिला बनाने का प्रस्ताव रखा। पहले सत्र की इन चर्चाओं का समापन चित्रा  सहस्रबुद्धे ने यह कहते हुए किया कि किसान और कारीगर संगठन अभी तक अलग-अलग अपने समाजों की ज़रुरत के मद्देनज़र अपने संघर्ष और अभियान चलाते रहे हैं तथा यह कि लोकविद्या जन आंदोलन का यह प्रयास है कि वे आपस में विस्तृत समन्वय के जरिये इस देश के भविष्य का एक प्रारूप बनाने के लिए आगे बढ़ें। यही इस देश का एजेंडा बनना चाहिए, जिसे लोकविद्या एजेंडा भी कहा जा सकता है और जो लोकविद्या सरकार के विचार को साकार करने का रास्ता खोलेगा।
इस सत्र में यह राय बनी कि यह पंचायत मुलताई के जनवरी 2014 के लोकविद्या जन आंदोलन और किसान संघर्ष समिति के संयुक्त प्रस्ताव को आगे बढाने का काम करे। इस प्रस्ताव के  पाँच बिन्दु हैं : विस्थापन बंद हो, लोकविद्या के आधार पर पक्की और नियमित आय की सरकारी व्यवस्था हो , राष्ट्रीय संसाधनों का बराबर का बंटवारा हो , स्थानीय संसाधनों, बाज़ार व प्रशासन पर स्थानीय समाजों का नियंत्रण हो तथा हर गाँव में मीडिया स्कूल हो। ( कृपया इसी ब्लॉग पर 21 जनवरी का लेखन देखें ) इन बिंदुओं पर मुलताई अधिवेशन के लिए प्रकाशित पुस्तिका 'जन संघर्ष और लोकविद्याधर समाज की एकता ' में विस्तार से लिखा गया है।
 ( लिंक : http://vidyaashram.org/papers/Jansangharsh_Unity_%20Multai_Conf.pdf )

दूसरा सत्र शुरू करते हुए सुनील सहस्रबुद्धे

दीवान चंद चौधरी , राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन 

दूसरा सत्र किसान और कारीगर संगठनों की  बातों के प्रति समर्पित रहा। इसमें भारतीय किसान यूनियन के प्रादेशिक सचिव सुरेश यादव ने किसानों के संगठनों के लिए लोकविद्या के महत्व को उजागर किया और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीवानचंद चौधरी ने स्वामीनाथन आयोग की रपट लागू करने पर ज़ोर दिया।  ग़ाज़ीपुर के अध्यक्ष दिनेशचंद पाण्डेय, चंदौली के अध्यक्ष जितेन्द्र तिवारी, वाराणसी के अध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद मौर्या, बस्ती के अध्यक्ष शिवराम सिंह, मिर्ज़ापुर के अध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह, मिर्ज़ापुर मंडल के अध्यक्ष प्रह्लाद पटेल और वाराणसी के मंडल सचिव दिलीप कुमार ने अपने-अपने क्षेत्रों के संगठन कार्यों तथा लोकविद्या विचार से मिलने वाली शक्ति से सम्बंधित बातें कीं।  वाराणसी के बुनकर संगठनों के गुलज़ार भाई, असरार भाई और एहसान अली ने कारीगरों की स्थिति और ज़रूरतों पर अपनी बात रखी। तय यह हुआ कि पूर्वी उत्तर प्रदेश  के ज़िलों में भारतीय किसान यूनियन की पंचायतों में कारीगर संगठनों को आमंत्रित किया जाये।  सत्र के अध्यक्ष वरिष्ठ किसान नेता बाबूलाल मानव ने अपने ओजस्वी भाषण से सत्र का समापन किया।
पंचायत में बोलते हुए सिद्धनाथ सिंह

पंचायत में बोलते हुए असरार भाई 

दूसरे दिन तीसरे सत्र की अध्यक्षता चौधरी दीवानचंद ने की।  इस सत्र में  मध्य प्रदेश किसान संघर्ष समिति के डा. सुनीलम विशेष रूप से उपस्थित थे। सीधी  से 'रोको-टोको-ठोको ' संगठन के नेता उमेश तिवारी और लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार भी पंचायत में शामिल थे। इन तीनों ने अपनी बात विस्तार से रखी।
डा. सुनीलम अपनी बात कहते हुए 

 डा. सुनीलम ने लोकविद्या समाज के एजेंडा को किसान एजेंडा के रूप में आगे बढाने की बात कही।  उन्होंने बताया कि मुलताई में लोकविद्या जन आंदोलन और किसान संघर्ष समिति के संयुक्त अधिवेशन के बाद से वे इस विषय को लेकर कई संगठनों से मिले हैं जिनमें किसानों के संघर्षशील संगठनों के अलावा वाम राजनीति की पार्टियां और संगठन भी शामिल है।  उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाते हुए जन आंदोलनों के साथ सहयोग से अगले तीन महीनों में किसान अजेंडा की बात उठानी चाहिए। आम आदमी पार्टी फिर से बहस में आई और लोकविद्या समाज को उससे कोई उम्मीद न होते हुए भी, जन आंदोलनों के जो सक्रिय कार्यकर्ता इस पार्टी से जुड़कर चुनाव लड़ेंगे उनको समर्थन के सवाल पर अलग-अलग मत सामने आये। सुनील सहस्रबुद्धे ने नयी राजनैतिक संस्कृति की  बात आगे करते हुए पूँजी बनाम ज्ञान का सन्दर्भ लेने की आवश्यकता पर बल दिया। यह भी कहा कि जब तक एक लोकविद्या एजेंडा देश का एजेंडा बनने का दावा पेश नहीं करता तब तक किसी नयी राजनैतिक संस्कृति का पुख्ता आधार कहाँ मिलेगा। उन्होंने यह सुझाया कि जबकि उत्तर पदेश में लोकविद्या जन आंदोलन, किसान आंदोलन व वाराणसी के कारीगर संगठनों के साथ मिलकर यह प्रयास कर रहा है, मध्य प्रदेश के साथी वर्त्तमान चुनावी सन्दर्भ में वहाँ के किसान और आदिवासी संघर्षों एवं संगठनों के बीच इस दिशा में वार्ता शुरू कर सकते हैं।  सत्र के अध्यक्ष दीवानचंद ने कारीगर और बुनकर संगठनों को भारतीय किसान यूनियन की पंचायतों में आकर अपनी बात रखने के लिए आमंत्रित किया और किसानों के भले में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू  करने पर ज़ोर दिया।
पंचायत का समापन इस समझ के साथ हुआ कि लोकविद्या समाज के विभिन्न हिस्सों को यथा सम्भव साथ आकर पंचायतें करनी चाहिए और देश के एजेंडा के रूप में एक लोकविद्या एजेंडा बनाने की ओर बढ़ना चाहिए। 

विद्या आश्रम 

Following is a brief account of the panchayat at Vidya Ashram on 10-11 February 2014.

It was a gathering of about 100, activists and leaders of LJA, farmers organizations and artisans from Indore, Multai, Singrauli, Seedhi, Lucknow, Darbhanga,Varanasi and districts around Varanasi. The meeting was centered on the question of building a lokavidya agenda for the Nation as a national agenda. By lokavidya agenda was understood proposals of programs and policies that recognize and embody lokavidya as a major source of strength for the people and the nation. 
The preparatory meeting on the evening of 9th Feb. turned out to be special. Shersingh, coming from Indore and a meson by profession, said that only a lokavidya sarkar  will properly look after the interests and well-being of the poor. And that such a sarkar cannot be formed through the prevalent electoral processes. Suddenly everybody felt that a critically important idea had been created for our movement towards a political imagination of the lokavidya samaj. A direct context was now there for the lokavidya agenda debate of the next two days.     
On the morning of 10th Feb. LJA activists from different places proposed what they plan to do about such a process to be initiated in their regions. For example Sanjeev Daji and his co-participants from Indore, Lakshmichand Dube and Ravishekhar from Singrauli, Chandraveer Narayan and Vijay Kumar from Darbhanga, Premalata Singh, Ehsaan Ali and Dilip Kumar from Varanasi, Suresh Yadav from Mau and Umesh Tiwari from Seedhi spoke about their plans. Awdhesh kumar, Manju Singh and Ekta from Singrauli and Ambarish Kumar, a senior journalist from Lucknow, also spoke in this session. Dr. Chitra Sahasrabudhey concluded this first session with a stress on the necessity of initiating open panchayat like processes to bring different segments of the lokavidya samaj together and that the building of the lokavidya agenda may have to be located in these processes. 
The second session was devoted to farmers organizations and artisanal participation. The high light of this session were Deevan Chand Chaudhary, National Vice President of BKU, Suresh Yadav, a UP State Secretary and Asarar Bhai from Weawers Organization. The dialogues were mainly focused on the outstanding problem of farmers and artisans. BKU leaders from Mirzapur, Varanasi, Ghazipur and Chandauli also spoke. Many of them referred to lokavidya perspectives providing a new and robust context for the progress of their work. 
The third session was again focused on the question of building the lokavidya agenda as a National Agenda, specifically in the context of the present political crisis caused by the Aam Admi Party (AAP) and the forthcoming General Elections. Dr. Sunilam and Sunil Sahasrabudhey intervened in a big way to suggest concrete panchayat like processes in Uttar Pradesh and Madhya Pradesh for organizations of lokavidya samaj to transcend their immediate concerns and move on to address national issues. There was debate on how to relate with social movements and leaders of struggles who were tending to forge closer relations with AAP in reference to the coming elections. There was general agreement that lokavidya samaj had little to expect from AAP, although it needs to be alive and flexible in the emerging situation. Expectations were voiced that the process started in Multai and continued with this Varanasi event, needs to be taken further. Just to remind that the five point program adopted at Multai Convention was : stop displacement, equal to university wages for lokavidya, equal distribution of national resources, local control of natural resources, market and administration and a media school in every village. (See blog post of  15 January 2014 )

Vidya Ashram

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