Friday, April 18, 2014

वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ताओं का देश से निवेदन

2014 के आम चुनाव के मौके पर 

वाराणसी 2014 के आम चुनाव में एक विशेष उपस्थिति दर्ज कर रहा है।  भाजपा के घोषित प्रधान मंत्री के दावेदार, नरेंद्र मोदी, यहाँ से चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं।  आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल उनके मुकाबले मैदान में उतरने की घोषणा कर चुके हैं।  यह चुनाव वाराणसी से देश के नाम सन्देश का रूप लेता जा रहा है। इस परिस्थिति में वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ताओं और जन-आंदोलनों से जुड़े लोगों ने आपस में  सघन चर्चा के दौर शुरू किये हैं।  जगह-जगह अनेक संगठनों, संस्थाओं और अभियानों के कार्यकर्ता आपस में चर्चाएं कर रहे हैं कि समाज की दृष्टि से सामान्य लोगों की अपेक्षाओं में खरा उतरने वाला, वह कौनसा सन्देश है जो इस मौके पर वाराणसी से देश और दुनिया के सामने जाना चाहिए। यह बात होती रही है कि ऐसे मौके पर जन-आंदोलनों की  स्वतंत्र दृष्टि को सामने लाना ज़रूरी है।  इन्हीं चर्चाओं में व्यक्त विचारों को समाहित करते हुए यह निवेदन तैयार किया गया है।  इस पर सहमत संगठनों के नाम निवेदन के अंत में दिए हुए हैं।

  1.  वाराणसी, राजनीति और सत्ता का केंद्र न होकर, इस भू-भाग की ज्ञान की परम्पराओं, दर्शन की ऊंचाइयों और भाईचारे की गंगा-जमुनी तहजीब का स्थान है। इसलिए वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता इस स्थान की महत्ता के अनुरूप देश और दुनिया के सामने इस विशेष अवसर पर यह कहना चाहते हैं कि बड़ा सोचें, मनुष्य और समाज की मुक्ति के विचारों और सन्दर्भों को अपने जीवन के मार्गदर्शन के लिए चुनें।  समाज और संस्कृति की हर गति पर राजनीतिक सत्ता का ज़ोर बनाने की प्रवृत्ति का पुरज़ोर विरोध करें और एक सत्य व न्याय पर आधारित समाज की स्थापना के लिए प्रयत्नशील हों।  
  2. वाराणसी की परम्परा और यहाँ  के समाज ने हमेशा ही सांप्रदायिक आधार पर समाज के विभाजन को अस्वीकार किया है। हम इस मौके पर एक बार फिर यह अपील करते हैं कि समाज में विभाजन और ध्रुवीकरण के विचारों और नीतियों को नकारें।  धर्म , जाति , लिंग , शिक्षा , वर्ग , अमीर-गरीब, शहर-गांव जैसे आधारों पर मनुष्य और मनुष्य के बीच तथा विविध समाजों के बीच ऊँच-नीच व नफ़रत का खुलकर विरोध करें।  जीवन दर्शन के महत्त्व को समझें , मानवीय मूल्यों और सर्व धर्म समभाव के दर्शन को स्थापित करें, जिनके अभाव में आक्रामक व फिरकापरस्त तानाशाही एवं फासीवादी प्रवृत्तियों को ही बल मिलता है।  
  3. 'विकास' के नाम पर देश के लोगों के साथ धोख़ा बंद हो। किसी से भी पूछा जाये कि खुशहाल कौन है , तो जवाब मिलता है - वह जिसके घर में कम से कम एक तनख्वाह आती है।  सरकारी कर्मचारी के वेतन के बराबर का मुआवज़ा तो दूर, वैश्वीकरण के इस दौर में किसानों, कारीगरों, आदिवासियों और पटरी के दुकानदारों के ज्ञान की लूट अपने चरम पर है।  इनके श्रम और उत्पादन को कम से कम दाम दिया जाता है और ज़मीन व अन्य संसाधनों से बेदखली की मार भी बढ़ती ही चली जा रही है।  ये सब अपनी जीविका और समाज अपने ज्ञान के बल पर चलाते हैं। इनके ज्ञान को लोकविद्या कहते हैं जिसके संवर्धन पर सरकार एक पैसा खर्च नहीं करती, उलटे उसे ज्ञान ही नहीं मानती।  इस देश के हुक्मरान गांधी को पूरी तरह भूल गए हैं , इसमें तो अब कोई संदेह ही नहीं हो सकता।  लोकविद्या समाज के कार्यों का न्यायसंगत  प्रतिफल यही है कि इनकी आय पक्की और नियमित हो तथा यह सरकारी कर्मचारी के वेतन के बराबर हो।  सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर इन समाजों और पढ़े-लिखे लोगों के बीच आय का अंतर अपूर्व आपराधिक पैमाना अख्तियार कर लेगा।  यही समय होगा जब असंगठित क्षेत्र और सरकारी कर्मचारियों की आय में समानता की बात पूरे ज़ोर से उठाई जाये और इसके लिए एक संगठित प्रभावी आंदोलन खड़ा किया जाये।
  4. देश के संसाधनों पर निगमों , पूंजीपतियों,  अफसरों , ठेकेदारों और राजनेताओं का जैसे पूरा कब्ज़ा हो गया है और देश कारपोरेट साम्राज्यवाद की गुलामी में जकड़ता चला जा रहा है। पूरी की पूरी राजनीति इस कब्जे और गुलामी को पुख्ता करने और उसे विस्तार देने में लगी हुई है।  जनता की सीधी और सरल आवाज़ यही है कि राष्ट्रीय संसाधनों पर देश के हर नागरिक का बराबर का अधिकार है और सरकार की यह मौलिक ज़िम्मेदारी बनती है कि इन संसाधनों का बराबर का बंटवारा हो।  बिजली, पानी, वित्त, शिक्षा और स्वास्थ्य ये प्रमुख राष्ट्रीय संसाधन हैं, इनमें सबका बराबर का हिस्सा लगना चाहिए।
  5. ग्राम सभा और मोहल्ला सभा को सक्रिय और प्रभावी करने की जो बहस शुरू हुई है उसे अपने तार्किक मुकाम तक जाना चाहिए।  जन-आंदोलनों की जल-जंगल-जमीन पर स्थानीय नियंत्रण की मांग का भी तार्किक विस्तार होना चाहिए।  स्थानीय लोग केवल यह नहीं बताएँगे कि उनका क्या है और उन्हें क्या चाहिए, बल्कि वे सामूहिक तौर पर यह बताएँगे कि यह देश कैसा होना चाहिए।  इसकी शुरुआत सभी स्थानीय व्यवस्थाओं पर स्थानीय समाजों के नियंत्रण से होती है।  इन स्थानीय व्यवस्थाओं में पंचायत, प्रशासन , बाजार , प्राकृतिक व राष्ट्रीय संसाधन तथा आपसी झगड़ों का निपटारा सभी कुछ शामिल है।  इससे सभी व्यवस्थाओं पर साइंस और टेक्नोलॉजी की ठेकेदारी से मुक्ति मिलेगी और नयी हवाओं के लिए अपने खिड़की और दरवाज़े खुले रखे जा सकेंगे , देश और जनता के आगे बढ़ने की देशज अवधारणाओं को बल मिलेगा।  
  6. यह साबित हो चुका है कि बड़े उद्योगों के विकास और विस्तार से सारी  जनता को औद्योगिक  व्यवस्था में समाहित नहीं किया जा सकता।  उसी तरह आधुनिक शिक्षा की व्यवस्थाओं द्वारा पूरा समाज शिक्षित नहीं किया जा सकता। इस देश में ज्ञान की विविध परम्परायें रही हैं और आज भी जीवंत हैं।  ज्ञान की इस विविधता के आधार पर शिक्षा के सार, स्वरुप और संगठन पर नए चिंतन और नयी नीति के निर्माण की आवश्यकता है।  किसानों, कारीगरों, आदिवासियों, और महिलाओं का समाज में जानकारों के रूप में सम्मान हो और उन्हें अपने काम का वाज़िब दाम मिले , इसके लिए शिक्षा की समझ और वास्तविकता में देशज आधार पर एक क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता है।  
  7. गांव-गांव और हर बस्ती में एक मीडिया स्कूल होना चाहिए।  जिस तरह आज़ादी के बाद हर गांव में अक्षर ज्ञान की शिक्षा की व्यवस्था बनायी गयी, उसी तरह नयी बन रही दुनिया में गांवों और गरीब वर्गों के नौजवान नयी क्षमताओं से लैस हो सकें इसके लिए मीडिया स्कूलों की ज़रुरत है।  ये स्कूल उनकी कला , भाषा और सृजन की क्षमताओं के पनपने और नया रुझान बनाने के स्थान होंगे।  यहाँ गांव और बस्ती के युवा यह सीखेंगे कि उनकी अपनी बात क्या है, उसे कैसे कहना है, कहाँ कहना है आदि। सम्प्रेषण, प्रस्तुतीकरण और संचार व संपर्क की विधाएं सीखेंगे।  
  8. जन-आंदोलन परिवर्तन के कारक घटकों का अनिवार्य हिस्सा होते हैं।  जन-आंदोलनों की अनुपस्थिति में न्याय के पक्ष में नीतियां नहीं बन पाती हैं और न जनपक्ष के फैसले ही हो पाते हैं। इन जन-आंदोलनों की धरती इस देश के गांव ही रहे हैं, इनमें किसान, आदिवासी, कारीगर, महिलाएं और नौजवान भाग लेते रहे हैं। अब इनमें पटरी के दुकानदार भी शामिल हो गए हैं।  ये सब अपने संसाधन बचाने, जीविका बचाने अथवा अपने काम और उत्पादन के दाम हासिल करने के लिए संघर्ष करते रहे हैं।  इनके संघर्षों और संगठनों से ही जन-आंदोलन बनते रहे हैं।  यह लोकविद्या समाज है और इनके ज्ञान, विचार और भाषा के आधार पर गांवों के पुनर्निर्माण के जरिये ही इस देश का सत्य और न्याय के आधार पर पुनर्निर्माण संभव है।   

निवेदनकर्ता 
सर्वोदय आंदोलन                                        अमरनाथ भाई ( 9389995502 ), अविनाश चन्द्र
लोकविद्या जन आंदोलन                            सुनील सहस्रबुद्धे ( 9839275124 ) , दिलीप कुमार 'दिली' 
साझा संस्कृति मंच                                      वल्लभाचार्य पाण्डेय ( 9415256848 )
विद्या आश्रम                                              डा. चित्रा  सहस्रबुद्धे 
लोकचेतना समिति                                      डा. नीति भाई  ( 9450181545 )
कारीगर नजरिया                                         प्रेमलता सिंह, एहसान अली , मो. अलीम 
विश्व ज्योति जनसंचार समिति                   फादर आनंद 
मानवाधिकार जन निगरानी समिति             डा. लेनिन रघुवंशी 
समाजवादी जन परिषद                               अफ़लातून, डा. नीता चौबे 
लोकसमिति , वाराणसी                                नन्दलाल मास्टर 
गांधियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज़                 डॉ. मुनीज़ा खान , डा. दीपक मालिक 
फेरी-पटरी-ठेला व्यवसायी समिति                राजेंद्र सिंह, प्रमोद निगम , आफताब , नूर मोहम्मद ,
                                                                   चिंतामणि 
भारतीय किसान यूनियन                              लक्ष्मण प्रसाद 
सूचना का अधिकार अभियान                        धनञ्जय त्रिपाठी , हर्षित शुक्ला, फ़िरोज़ भाई 
आशा ट्रस्ट                                                    प्रदीप सिंह , दीनदयाल 
विजन                                                          जागृति राही 
ऑल इण्डिया पीपुल्स सालिडेरिटी ऑर्गनाइज़ेशन     डा. आनंद प्रकाश तिवारी 
ग्राम्या                                                          बिन्दु सिंह, सुरेन्द्र 
महिला स्वरोज़गार समिति                            रेखा चौहान 
एशियन ब्रिज                                                मो. मूसा आज़मी 
अस्मिता                                                       राम प्रताप, सुरजीत 
शिक्षा का अधिकार अभियान                         अजय पटेल, राजकुमार 
राष्ट्रीय समाज सेवा                                       मनीष 
सामाजिक कार्यकर्ता                                      डा. पारमिता, डा. रमन, विनोद , विक्रम 

वाराणसी, 15  अप्रैल, 2014  

पर्चे के रूप में वाराणसी से विद्या आश्रम द्वारा प्रकाशित।


चित्रा सहस्रबुद्धे
समन्वयक, विद्या आश्रम  

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