Monday, May 12, 2014

वाराणसी के चुनाव और सामाजिक कार्यकर्ताओं की स्वतन्त्र पहल

साथियों , 

2014 के इस लोकसभा चुनाव में मोदी और केजरीवाल वाराणसी में टकरा गये।  नतीजे स्वरुप बहुत बड़ी तादाद में बाहर से लोग इस दौर में वाराणसी आये।  जबकि अधिकांश या यों कहें कि लगभग सभी इस या  उस पार्टी के समर्थन में आये,  फ़िर भी कुछ ऐसे समूह ज़रूर आये जो किसी के समर्थन में नही बल्कि जनता से बात करने, उनकी सुनने और अपनी कहने के लिये आये। बाहर के लोगों के आने के पहले से वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता जन आन्दोलनों की स्वतंत्र दृष्टि सामने लाने के लिये कार्यरत थे।  लगभग 25 समूहों द्वारा एक संयुक्त पर्चा निक़ाला गया था 2014 के आम चुनाव के मौके पर : वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ताओं का देश से निवेदन '. इन लोगों ने बाहर से आये कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर एक व्यापक आपसी विमर्श बनाया। 6 मई से 10  मई के बीच कई बैठकें की गईं।  यह इन बैठकों की एक संक्षिप्त रिपोर्ट है। वाराणसी के कार्यकर्ता और बाहर से आये समूहों के कार्यकर्ता चुनावों के सन्दर्भ में दिन भर गावों और बस्तियों व अन्य स्थानों पर अपने काम के बाद शाम को 8 बजे गंगा जी के किनारे किसी एक घाट पर एकत्र हो कर आपस में चर्चा  करते थे, एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने और आपस में सहयोग के रास्ते खोजते थे। इन बैठकों में सामान्यतः  60 - 65 कार्यकर्ता शामिल होते थे।  
  
6 मई को भैंसासुर घाट पर , 7 मई को सिंधिया घाट, 8 मई को शिवाला घाट और 9 मई को फिर भैंसासुर घाट पर ये बैठकें हुईं ।  इन बैठकों में वाराणसी में कार्यरत समूहों की ओर से पारमिता, वल्लभ, धनञ्जय, रमन , दिलीप कुमार 'दिली' , लक्ष्मण प्रसाद , चित्रा जी, शिवमूरत, भरतलाल मांझी,  मुनीज़ा ख़ाँ, लेनिन रघुवंशी, श्रुति नागवंशी , प्रेम प्रकाश, संदीप पांडेय, चंचल, सुनील सहस्रबुद्धे, अफ़लातून, स्वाति जी, प्रेमलताजी आदि ने भाग लिया। बाहर से आये लोगों में अशोक चौधरी और विजयन के नेतृत्व में संघर्ष -2014 का एक बड़ा समूह, झारखंड की दयामनी बारला और उनका समूह, मुंबई से तीस्ता सीतलवाद  और लाल निशान पार्टी के मिलिंद रानडे और उनके साथी , दिल्ली से अरविंद गौड़  और उनका  अस्मिता कला समूह , इलाहाबाद से उत्पला और सुव्रत राजू (अब बंगलुरु ) के साथ शहरी गरीबों के बीच काम करने वाला एक समूह, प्रतिरोध का सिनेमा से मनीष, अहमदाबाद से सर्वोदय आंदोलन के ऊषा बहन और वीनूभाई, लखनऊ से राजीव और उनके साथियों इत्यादि ने भाग लिया ।  मोटे तौर पर वाराणसी, इलाहाबाद , लखनऊ, दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, धारवाड़, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, केरल, सिंगरौली, सोनभद्र, चित्रकूट, जौनपुर, अहमदाबाद, अहमद नगर, उत्तराखंड आदि से संगठनों और कार्यकर्ताओं की भागीदारी रही है। जगह - जगह से आये पत्रकार भी इन बैठको में आते रहे।     

संघर्ष  2014 की टीम संख्या में उपस्थित थी। भारतीय किसान यूनियन के वाराणसी ज़िला अध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद के साथ वे करसड़ा, मोहनसराय , डोमरी, बरईपुर आदि गांवों में होकर आये और वहाँ  के किसानों से उनके संघर्षों के बारे में विस्तृत चर्चा करके आये।  इस टीम के सदस्यों में विजयन, भार्गवी, सँतोष , लक्ष्मी , इशिता, आशिमा, अनिल, मातादयाल, मनोज, अमरजीत कुमार, श्रीराम पाल, सन्जीव आदि ने अपने अनुभव साझा किये। उन्होंने कहा कि चूँकि वे किसी  पार्टी की ओर से नही थे  इसलिए इन वार्ताओं में गॉँव वालोँ ने खुलकर अपनी बात कही।  

बैठकों में शामिल होने वाले सभी लोगों को अपनी बात कहने का मौका मिला। सबने अपने - अपने दृष्टिकोण सबके सामने रखे।  खुलकर किसी पार्टी का समर्थन करणे वाला शायद ही कोई  था। कई लोगों ने कहा कि अन्य पार्टियों और उनके नेताओं के प्रति मोदी समर्थकोँ के आक्रामक रवैये, मारपीट  की बढ़ती घटनाओं से बने माहौल से मोदी का तानाशाह और सांप्रदायिक चेहरा खुलकर सामने आया है।  गुजरात माडल और गंगाजी के लिये साबरमती के नाम पर बोले जा रहे झूठ को कुछ लोगों ने सफाई से सामने रखा।  

बैठकों में सामान्य मत यह रहा कि चुनावों के बाद की परिस्थितियां और ख़राब ही होने वाली हैं। किसानों , कारीगरों , आदिवासियोँ, छोटे-छोटे दुकानदारों , मज़दूरों और सामान्य महिलाओं की ज़िंदगी की कठिनाइयाँ बढ़ने ही वाली हैँ , उनके संघर्ष  भी बढ़ने वाले हैं।  ऎसी स्थिति में यहाँ एकत्रित कार्यकर्ताओँ को अपने आगे के कामों के बारे में भी आपस में बात करना चाहिए।  

10 मई को विद्या आश्रम, सारनाथ में बैठ कर आगे के बारे में बात की गयी । प्रमुख रूप से अशोक चौधरी और उनके संघर्ष-2014  के साथी, राजीव और लखनऊ के साथी, लोकविद्या जन आंदोलन और साझा संस्कृति मँच के साथी शामिल थे। सबके सामने 28 - 29 जून 2014 की लोकविद्या जन आंदोलन द्वारा प्रस्तावित नागपुर बैठक का पर्चा रख दिया गया।  एक बार फिर लोगों ने वर्तमान परिस्थिति और संघर्षो के शक्ति संग्रह पर अपने विचार रखे तथा चुनावों के बाद बनारस में एक ऐसी बैठक करने की बात की जिसमें इस क्षेत्र के संघर्षशील समूह भाग लें। यह तय किया गया कि किसानों, आदिवासियोँ, कारीगरोँ , मज़दूरों, महिलाओं और छोटे दुकानदारों के संघर्षों में आपसी सहयोग तथा इन समाजों के बीच एकता के वैचारिक आधार यह इस समागम का विषय हो। 
इस पर सहमति बनी कि यह समागम दो दिन का विद्या आश्रम, सारनाथ में 7 - 8 जून 2014 को हो।  20 मई को विद्या आश्रम पर इसकी एक तैयारी बैठक रखी गयी है।  आप में से जो भी इसमें रुचि रखते हों इस तैयारी बैठक में अवश्य आएं।  

 
सुनील सहस्रबुद्धे 

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