Saturday, September 20, 2014

विद्या की नगरी वाराणसी में लोकविद्या की गूँज , 18-19 सितम्बर 2014

वाराणसी में बुनकर - कारीगर पदयात्रा, लोकविद्या सत्संग और लोकविद्या ज्ञान पंचायत के कार्यक्रम योजना के अनुकूल ही संपन्न हुए।  आंध्र प्रदेश के चिराला नगर से भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय रही।  मोहन राव और वीरनागेश्वर राव के नेतृत्व में राष्ट्रीय हथकरघा बुनकर जन समाख्या के 300  से अधिक बुनकरों ने भाग लिया।  इनमें लगभग आधी महिलाएं थीं।  मालवा-निमाड़ से संजीव दाजी  के  नेतृत्व में लोकविद्या समन्वय समिति की ओर से 40 कारीगरों और आदिवासियों ने भाग लिया जिनमें एक लोकविद्या सत्संग गायकी समूह भी था।  वाराणसी के बुनकर वेलफेयर संघर्ष समिति, ठेला - गुमटी यूनियन , कारीगर नजरिया, नारी हस्तकला उद्योग समिति और  आस - पास के ज़िलों के भारतीय किसान यूनियन की ओर से तथा अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी रही।  


                                  भैंसासुर घाट से शुरू होती पदयात्रा 

                    बुनकर बिरादरी के सरदार और एहसान अली

18 सितम्बर की पदयात्रा दो भागों में संपन्न हुई।  पहले गंगाजी के भैंसासुर  घाट से  शुरू कर के सभी भागीदार बुनकर बस्तियों से गुजरते हुए नेशनल इण्टर कालेज, पीली कोठी तक आए और वहां एक सभा कर के सभी के सामने पदयात्रा के उद्देश्य बताए गए।

               पीली कोठी में पदयात्रा में बोलते हुए दिलीप कुमार 'दिली'

                  पीली कोठी में पदयात्रा में बोलते हुए मोहन राव 

  सभी वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह एक ज्ञान आंदोलन है जिसमें किसान और कारीगर लोकविद्या समाज की सभी  बिरादरियों के साथ अपने ज्ञान यानि लोकविद्या का दावा पेश कर रहे हैं।  यह कह रहे हैं कि लोकविद्या भी उसी दर्जे की हक़दार है जो विश्वविद्यालय के ज्ञान को दिया गया है और यह कि लोकविद्या के बल पर वे उसी आमदनी के हक़दार हैं जो सरकारें अपने कर्मचारियों को देती हैं।  कई वक्ताओं ने राष्ट्रीय वेतन आयोग की बात की और कहा कि अब की बार लोकविद्या-समाज भी वही लेकर रहेगा जो वेतन आयोग सरकारी कर्मचारियों के लिए तय करता है।  
दूसरे चरण में पदयात्रा में पीली कोठी से तमाम स्थानीय बुनकर और कार्यकर्ता शामिल हुए।  शहर के एक मुख्य बाजार से होते हुए पदयात्रा टाउन हॉल पहुंची और गांधीजी व कस्तूरबा की प्रतिमा के सामने एक सभा में तब्दील हो गयी। लोकविद्या के बोल गा  कर और गांधीजी को प्रणाम कर के लोकविद्या जन आंदोलन के कार्यकर्ताओं और बुनकर नेताओं ने लोकविद्या का यह आंदोलन आगे बढ़ाने का संकल्प ज़ाहिर किया। बोल ये हैं - लोकविद्या के स्वामी बोल, ज्ञान के अपने दावे खोल।  तेरा ज्ञान है अनमोल;  मूर्ख,  गंवार न खुद को तोल।  तेरी विद्या है बेजोड, लोकविद्या है बेजोड़ , अपने ज्ञान का दावा ठोक। फिर रात को इन्ही बोलों से शुरू करते हुए गंगाजी के तट पर लोकविद्या सत्संग का कार्यक्रम देर रात तक चला।  

     गांधी - कस्तूरबा की प्रतिमाओं के सामने कार्यक्रम का संयोजक समूह 

                     पदयात्रा के पूर्ण होने पर टाउन हॉल में  भागीदार 

19 सितम्बर को सारनाथ में विद्या आश्रम पर आंदोलन की मुख्य बात - लोकविद्या के आधार पर बराबरी की आय के विषय पर सभी भागीदारों के सामने कई लोगों ने अपना दृष्टिकोण रखा।  विशेषरूप से यह चर्चा की गयी कि यह उद्देश्य निश्चित तौर पर प्राप्त किया जा सकता है व इसमें विश्वास का आधार किसी रणनीति या सरकारों की मंशा में नहीं है बल्कि इस समझ और दर्शन में है कि लोकविद्या वास्तव में किसी भी और ज्ञान से कम नहीं होती। 
सितम्बर 2015 में लोकविद्या-समाज की एक महापंचायत संगठित करने का प्रस्ताव इस सभा में आया। इस प्रस्ताव का उपस्थित कारीगर और किसान संगठनों ने अनुमोदन किया।  लोकविद्या जन आंदोलन जल्दी ही इस प्रस्ताव के अनुकूल वार्ताएं शुरू करेगा और आयोजन के समय व स्थान के पक्के निर्णय लिए जायेंगे।  

पदयात्रा के दौरान और आश्रम पर हुए संवाद में बोलने वालों में प्रमुख रहे - चित्रा सहस्रबुद्धे, प्रेमलता सिंह, दिलीप कुमार 'दिली' , लक्ष्मण प्रसाद, एहसान अली , मोहन राव , वीर नागेश्वर राव, संजीव दाजी , हाजी रहमतुल्ला, मुन्नूलाल रावत, दिनेश पांडये , अस्पताली सोनकर , पारमिता  और सुनील सहस्रबुद्धे। 

आश्रम में हुए संवाद का एक दृश्य 

आश्रम पर लोकविद्या गायकी 


विद्या आश्रम 



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